भले ही
नकार दिए जाएं
घर के आंगनों से हम ,
चाहे
ज़रा सी ही जगह मिले
या,, सिर्फ चुटकी भर धूप,,
अब
स्वयं को सींचना होगा हमें
स्वयं की ही जड़ों से,,
कि बदल रही हैं अपना रुख
ये बारिशें भी,,
सुनो
व्यवस्थित करना होगा
अपना एक अलग ही पर्यावरण,,
हमें
एक जिद्दी पौध की तरह
हर हाल में उग आना होगा
अपनी-अपनी मनचाही जगहों पर !!

मैं एक समर्पित साहित्य साधिका हूं, जिनकी रचनाएं समय-समय पर विभिन्न साझा संकलनों व प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं जैसे मेरी सहेली, अमर उजाला की रूपायन, विभोम स्वर, कवि कुंभ, तथा अमेरिका से प्रकाशित साप्ताहिक अख़बार हम हिंदुस्तानी और सेतु में प्रकाशित होती रही हैं।
इंस्टाग्राम के लोकप्रिय साहित्यिक समूह “शब्द हार” की कोर टीम का हिस्सा रह चुकी हूं और वर्तमान में “काव्यांश” नामक एक सक्रिय साहित्यिक मंच का संचालन कर रही हूं, जो नवोदित व स्थापित रचनाकारों को मंच प्रदान करता है।
मेरे लेखन को विभिन्न मंचों द्वारा सराहा गया है और मुझे कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया है, जिनमें “काव्य श्री सम्मान”, “भारत माता सम्मान” तथा “नारी रत्न सम्मान” प्रमुख हैं।
1 Comment
बहुत खूब आदरणीया👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻