बावनी इमली हत्याकांड आकर बच्ची ने कहा, माँ मुझको बतलाओ ।वो जो इमली का तरु ,क्यों न झूला पाओ ।क्यों सूना- सूना सा रहता है, पत्ते क्यों नहीं दिखते।खट्टे-खट्टे इमली के फल , बोलो क्यों नहीं लगते । पास बैठाकर बड़े ध्यान से, मैंने उसको देखा ।तैर रहे जो प्रश्न नयन में, उन सबको भी देखा । बोली , प्यारी बिटिया रानी, सुनो ध्यान से बात ।ये केवल एक वृक्ष नहीं, ये तो वीरों का ताज । इसने देखा है भारत की ,वीर जवानों को ।इसने देखा है गोरों की, नीच कहानी को ।आज़ादी की प्रथम लड़ाई,देश रहा हुंकार ।आतंकी अंग्रेज़ों ने किया था, निर्मम अत्याचार । एक नहीं पूरे बावन ,माँ के लालों से कपट किया ।भारत माता के बेटों का छल – बल से संहार किया । इसी पेड़ पर क्रूरों ने ,वीर सपूतों को लटकाया ।इसी पेड़ के तले दुष्टों ने , उनका रक्त बहाया । ये इमली का वृक्ष तभी से, हरा-भरा नहीं होता।आज़ादी की क़ुर्बानी का राज, मौन रह कहता । आओ इसको नमन करो ,इसकी माटी को चूमो।याद करो एक-एक शहीद को,कभी न उनको भूलो । कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
प्रथम पूज्य गणपति
जय जय जय गणपति गणनायक ।बुद्धि विवेक के तुम हो दायक । गज आनन शोभा अति प्यारी,मात-पिता प्रति भक्ति न्यारी ।विध्न हरो सब पूज्य विनायक । पान फूल मोदक सब लाए,भाव- भक्ति से भरकर आए।आन विराजो सिद्धि विनायक । सब देवन में प्रथम पूज्य हो,गौरी-शिव के प्यारे सुत हो ।रिद्धि- सिद्धि संगिनी सुखदायक । जो कोई तुमको मन से ध्यावे,मनवांछित सारे फल पावै।सत चित आनंद दो वरदायक । कुसुम रानी सिंघल कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
हौसलों का बाल रवि
कालिमा का चक्र खुद बा खुद मिटेगा ,साथ हम दोनों का काम कुछ यूँ करेगा । दो दिलों का प्यार और विश्वास मिलकर,हर अंधेरी रेख को पीछे करेगा । हाथ को बस हाथ में ऐसे ही रखना ,आस का सूरज अनोखा खुद उगेगा । दिव्य आभा स्वत:तम को चीर देगी ,हौसलों का बाल रवि नभ पर दिखेगा । ज़िंदगी की ंसांझ भी फिर खिल उठेगी,प्रेम की वीणा का कोई सुर बजेगा । नत हुई नज़रें तुम्हारी ,मौन स्वर में आज कहतीं । इस रुपहली राह में ,कोई न कोई गुल खिलेगा । कुसुम रानी सिंघल कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
मनभावन सावन
क्या खूब लुभाते मन को सुहाते हो ।पावस के राजा तुम सावन बन आते हो। कारे कारे बदरा जब घुमड़- घुमड़ आते,अंबर के आँगन मे वो मचल – मचल जाते।तुम नयन मूँदकर के मन में मुसकाते हो ।पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो । विरहा में जो दहकी वो शीतल हो जाती,फिर उछल उछल कर के ख़ुशबू सी वह जाती।पत्ते- पत्ते से मिल संगीत सजाते हो।पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो । धरती दुलहिन सी बन मानो फिर इठलाती ,और हरी हरी चूड़ी हाथों में सज जातीं।मोती सम बूँदों से तुम माँग सजाते हो।पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो। नदियाँ नाले भरते और सबसे हैं कहते ,चलना ही जीवन है हम कभी नहीं रुकते।बहना सबको पड़ता सबसे कह जाते हो।पावस के राजा तुम सावन बन आते हो । सावन के आते ही बहना सजने लगती, मनभावन राखी की लड़ियाँ बनने लगती ।घेवर और फैनी की ख़ुशबू फैलाते हो।पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो। पपीहा की पिहु-पिहु सुन मन व्याकुल होउठता,बिसरी यादों में वो फिर खोने सा है लगता ।कजरी की थापों पर तुम खूब नचाते होपावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो । कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
तुम्हारे साथ ज़िंदगी
तुम्हारा साथ जब होता , ज़िंदगी महकने लगती । तुम्हारा साथ जब होता, ज़िंदगी चहकने लगती। आसमां छूने लगती हूँ , बात जब तुमसे होती है । ज़िंदगी जीने लगती हूँ नज़र जब तुम पर होती है । सभी गम दूर रहते हैं, पास जब तुममेरे रहते । गिले शिकवे नहीं दिखते , हाथ में हाथ जब होते । सुवासित मन ये हो जाता, दिव्य आनंद मिल जाता। हरेक पल थिरकने लगता , अलख संगीत बज जाता। विनय ईश्वर से ये करती, हसीन पल ये रहें जारी, तुम्हारे साथ जीवन में , सफर सुंदर रहे जारी। कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
पीड़ा की पीड़ा
पीड़ा की पीड़ा क्या होती,क्या जानें पीड़ा के दाता ?वे तो बस वो ही करते है ,जो उनके मन को है भाता । बॉट रहे तेरे मेरे में ,पीड़ा को भी ये बेचारे ।पीड़ा तो पीड़ा होती है ,न समझे ये तो बेचारे। कितनी भोली कितनी सीधी ,होती है पीड़ा बेचारी।कितनी भी गहरी होती हो ,मौन सदा रहती बेचारी । पीड़ा की संगति से मन भी ,इधर-उधर फिर कहॉ भटकता?इसको ही सहलाता रहता,ताका झाँकी कब है करता? वाद्य यंत्र सी खुद कब बजती ?खामोशी से जी लेती है ।फिर भी तुम इससे कतराते,ये ही तो जीवन होती है । तुमने सोच-समझ कर दी है,पर मुझको अच्छी लगती है।मेरे एकाकी जीवन में ,सखी सहेली सी मिलती है । कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/
तनिक सोचिए
वृक्ष न होगा तो क्या होगा? कौन प्रदूषण दूर करेगा? कौन हमें छाया फल देगा? कहाँ छिपेगी प्यारी कोयल? तोता टें-टें कहाँ करेगा? रामभक्त हनुमान कहाँ पर, लुका-छुपी का खेल करेगा? वृक्ष न होगा तो क्या होगा? कौन निमंत्रण देगा घन को? कैसे वर्षा मंगल होगा? बंध्या हो जाएगी धरती, शस्य श्यामला कौन करेगा? वृक्ष न होगा तो क्या होगा? मत काटो इनको तुम मानव, बार-बार विनती करती हूँ । इन्हें लगाओ इन्हें बढ़ाओ, बार-बार तुमसे कहती हूँ । वृक्ष रहेगा , वृक्ष फलेगा, जन- जीवन खुशहाल रहेगा । वृक्षों से ही धरती माँ का रोम – रोम आबाद रहेगा । कुसुम रानी सिंघलbolateekalam.com/