मैंने देखा था एक ख्वाब,जब मेरा अपना घर होगा,
तो पक्का नहीं…एक कच्चा-सा प्यारा घर होगा ।
जिसकी छत पर छप्पर हो,दीवारों में बड़ी-बड़ी झिरकियां हों,
पति संग जब चली ,मिला सपनों का घर जैसा मैने चाहा ।
सपनों में था कच्चा घर, छप्पर ऊपर छाँव,
साजन संग कट जाएँ, जीवन के सब घाव।
झिरकी से बरसात को, नैनन देखत जाएं,
टप-टप गिरती बूँद में, मन मधुबन मुस्काएं।
मैंने चाहा बिल्कुल वो, सरल सुहाना द्वार,
ईंटों में भी प्यार था, मिट्टी में भी इकरार ।
मायका छोड़ चली जब, दिल में था संकोच,
सपनों जैसा घर मिला, बदली जीवन-ओट।
प्रियतम का वह प्रेम , ससुराल की वह छाँह,
मीठे पलों की महक में, भर गया हर माह।
देहरी पर बैठी मैं, संग हवा के बोल,
सपनों की दुनिया में था, साजन मेरा अनमोल ।।