पीड़ा की पीड़ा क्या होती,
क्या जानें पीड़ा के दाता ?
वे तो बस वो ही करते है ,
जो उनके मन को है भाता ।
बॉट रहे तेरे मेरे में ,
पीड़ा को भी ये बेचारे ।
पीड़ा तो पीड़ा होती है ,
न समझे ये तो बेचारे।
कितनी भोली कितनी सीधी ,
होती है पीड़ा बेचारी।
कितनी भी गहरी होती हो ,
मौन सदा रहती बेचारी ।
पीड़ा की संगति से मन भी ,
इधर-उधर फिर कहॉ भटकता?
इसको ही सहलाता रहता,
ताका झाँकी कब है करता?
वाद्य यंत्र सी खुद कब बजती ?
खामोशी से जी लेती है ।
फिर भी तुम इससे कतराते,
ये ही तो जीवन होती है ।
तुमने सोच-समझ कर दी है,
पर मुझको अच्छी लगती है।
मेरे एकाकी जीवन में ,
सखी सहेली सी मिलती है ।