क्या खूब लुभाते मन को सुहाते हो ।
पावस के राजा तुम सावन बन आते हो।
कारे कारे बदरा जब घुमड़- घुमड़ आते,
अंबर के आँगन मे वो मचल – मचल जाते।
तुम नयन मूँदकर के मन में मुसकाते हो ।
पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो ।
विरहा में जो दहकी वो शीतल हो जाती,
फिर उछल उछल कर के ख़ुशबू सी वह जाती।
पत्ते- पत्ते से मिल संगीत सजाते हो।
पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो ।
धरती दुलहिन सी बन मानो फिर इठलाती ,
और हरी हरी चूड़ी हाथों में सज जातीं।
मोती सम बूँदों से तुम माँग सजाते हो।
पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो।
नदियाँ नाले भरते और सबसे हैं कहते ,
चलना ही जीवन है हम कभी नहीं रुकते।
बहना सबको पड़ता सबसे कह जाते हो।
पावस के राजा तुम सावन बन आते हो ।
सावन के आते ही बहना सजने लगती,
मनभावन राखी की लड़ियाँ बनने लगती ।
घेवर और फैनी की ख़ुशबू फैलाते हो।
पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो।
पपीहा की पिहु-पिहु सुन मन व्याकुल होउठता,
बिसरी यादों में वो फिर खोने सा है लगता ।
कजरी की थापों पर तुम खूब नचाते हो
पावस ऋतु के राजा सावन बन आते हो ।