कालिमा का चक्र खुद बा खुद मिटेगा ,
साथ हम दोनों का काम कुछ यूँ करेगा ।
दो दिलों का प्यार और विश्वास मिलकर,
हर अंधेरी रेख को पीछे करेगा ।
हाथ को बस हाथ में ऐसे ही रखना ,
आस का सूरज अनोखा खुद उगेगा ।
दिव्य आभा स्वत:तम को चीर देगी ,
हौसलों का बाल रवि नभ पर दिखेगा ।
ज़िंदगी की ंसांझ भी फिर खिल उठेगी,
प्रेम की वीणा का कोई सुर बजेगा ।
नत हुई नज़रें तुम्हारी ,
मौन स्वर में आज कहतीं ।
इस रुपहली राह में ,
कोई न कोई गुल खिलेगा ।
कुसुम रानी सिंघल
