काँटों के बीच
कुछ तो है
जो मुझे तुमसे कहना है,
रास्ते में बिखरे काँटों को
अब समेटना है।
हाँ, वही काँटे—
जो मुस्कुराहट की ओट में
अपना छल छुपाए बैठे थे।
उन रास्तों पर
फूलों का गुलदस्ता
अब मुझे ही सजाना है।
कुछ अनजाने काँटे
जो मेरे सीने की गहराइयों में
चुभ गए हैं,
उन्हीं से अब
खुद को बचाना है।
पर सफ़र यहीं रुकता नहीं।
हवा में अभी भी
कई अनकहे सवाल तैरते हैं,
जो मेरी ख़ामोशी के भीतर
धीरे-धीरे सुलगते रहते हैं।
अगर कभी तुम समझ सको,
तो जानना—
हर मुस्कान के पीछे
एक थकी हुई साँस होती है,
और हर थकान के पीछे
एक ऐसी जंग
जिसे कोई देख नहीं पाता।
मैंने उम्र भर चाहा
कि रास्ते फूलों से भरे हों,
मगर शायद किस्मत को
काँटों की चुभन ही मंज़ूर थी।
अब यह सीख लिया है मैंने—
ज़ख़्म भी रास्तों का सच हैं,
और दर्द,
अक्सर हमें
खुद से मिलाने आता है।

आर एस लॉस्टम का जन्म बिहार के औरंगाबाद ज़िले में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव के विद्यालय से प्राप्त की। इसके पश्चात उच्च शिक्षा हेतु वे गया और फिर दिल्ली गए, जहाँ उन्होंने अपने परिश्रम, संघर्ष और आत्मविश्वास के बल पर शिक्षा को आगे बढ़ाया।
पेशे से वे एक सफल व्यापारी हैं, किंतु साहित्य उनके जीवन का आत्मीय पक्ष है। कविता और कहानी लेखन उनका शौक ही नहीं, बल्कि संवेदना, अनुभव और विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। उनकी रचनाओं में जीवन के यथार्थ, प्रेम, संघर्ष, स्मृति और सामाजिक चेतना की स्पष्ट झलक मिलती है।
व्यवसाय और साहित्य—दोनों क्षेत्रों में सक्रिय रहते हुए आर एस लॉस्टम अपनी लेखनी के माध्यम से मनुष्य, समाज और समय से संवाद स्थापित करने का प्रयास करते हैं।