जीवन रूपी बगिया के ये सुंदर सुमन सलौने,
मृत जीवन में प्राण फूँक दें अद्भुत बाल सलौने ।
तुतलीा सी भाषा सुनकर के अनहद सा बजता है,
घर आंगन परिवार इन्हीं बच्चों से ही बनता है ।
मात – पिता की धड़कन तुम हो आंगन की अठखेली,
नेत्र- ज्योति दादा-दादी की अमरबेल सी बोली ।
तुम आशा हो देश-धर्म की तुम भावी सपने हो,
भारत माँ का मान तुम्ही हो जन जन के अपने हो ।
प्रतिभा लगन हौसला सबकुछ नहीं कमी कोई है,
भारत के भविष्य तुम सारे फिकर नहीं कोई है ।
ज़हरीली सी चली हवाएँ इनमें फँस नहीं जाना,
संस्कार का मास्क लगाकर आगे बढ़ते जाना ।
रहे ध्यान बस इतना बच्चों भारत में जन्मे हो ,
राणा और शिवा के वंशज नहीं किसी से कम हो ।
अपने प्रखर ज्ञान प्रतिभा से डंका तुम्हें बजाना ,
पाठ स्वदेशी का पढकर जन – जन को तुम्हें जगाना ।
छोडो पीज़ा बर्गर मैगी चाकलेट और कोला,
बहुत लुट चुके अब न लुटेंगे मौसम भी अलबेला ।
आज समय ने दस्तक दी है दरवाज़े सब खोलो,
प्यारे बच्चे एक साथ भारत माँ की जय बोलो ।