बावनी इमली हत्याकांड
आकर बच्ची ने कहा, माँ मुझको बतलाओ ।
वो जो इमली का तरु ,क्यों न झूला पाओ ।
क्यों सूना- सूना सा रहता है, पत्ते क्यों नहीं दिखते।
खट्टे-खट्टे इमली के फल , बोलो क्यों नहीं लगते ।
पास बैठाकर बड़े ध्यान से, मैंने उसको देखा ।
तैर रहे जो प्रश्न नयन में, उन सबको भी देखा ।
बोली , प्यारी बिटिया रानी, सुनो ध्यान से बात ।
ये केवल एक वृक्ष नहीं, ये तो वीरों का ताज ।
इसने देखा है भारत की ,वीर जवानों को ।
इसने देखा है गोरों की, नीच कहानी को ।
आज़ादी की प्रथम लड़ाई,देश रहा हुंकार ।
आतंकी अंग्रेज़ों ने किया था, निर्मम अत्याचार ।
एक नहीं पूरे बावन ,माँ के लालों से कपट किया ।
भारत माता के बेटों का छल – बल से संहार किया ।
इसी पेड़ पर क्रूरों ने ,वीर सपूतों को लटकाया ।
इसी पेड़ के तले दुष्टों ने , उनका रक्त बहाया ।
ये इमली का वृक्ष तभी से, हरा-भरा नहीं होता।
आज़ादी की क़ुर्बानी का राज, मौन रह कहता ।
आओ इसको नमन करो ,
इसकी माटी को चूमो।
याद करो एक-एक शहीद को,
कभी न उनको भूलो ।
